Hindu Dharm : आज संकष्टी चतुर्थी जानें पूजा विधि और क्या करें और क्या नहीं


संकष्टी चतुर्थी आज : जानें पूजा विधि और क्या करें और क्या नहीं

संकष्टी चतुर्थी हिन्दू धर्म का एक प्रसिद्ध त्यौहार है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। भगवान गणेश को अन्य सभी देवी-देवतों में प्रथम पूजनीय माना गया है। इन्हें बुद्धि, बल और विवेक का देवता का दर्जा प्राप्त है।

ऐसे में आज यानि 8 जून 2020, सोमवार को संकष्टी चतुर्थी है। ये दिन भगवान गणेश जी को समर्पित है, माना जाता है कि जिन लोगों पर भगवान गणेश जी की कृपा होती है उनके जीवन में सदैव ही सुख समृद्धि सदैव बनी रहती है। कष्ट ऐसे लोगों से दूर ही रहते हैं।

क्योंकि मान्यता है कि भगवान गणेश अपने भक्तों की सभी परेशानियों और विघ्नों को हर लेते हैं इसीलिए इन्हें विघ्नहर्ता और संकटमोचन भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए कई व्रत-उपवास आदि किए जाते हैं, इनमें से भगवान गणेश के लिए किए जाने वाला संकष्टी चतुर्थी व्रत भी काफ़ी प्रचलित है।

ऐसे समझें संकष्टी चतुर्थी को...
संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी। संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘कठिन समय से मुक्ति पाना’।

इस दिन व्यक्ति अपने दुःखों से छुटकारा पाने के लिए गणपति की अराधना करता है। पुराणों के अनुसार चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करना बहुत फलदायी होता है। इस दिन लोग सूर्योदय के समय से लेकर चन्द्रमा उदय होने के समय तक उपवास रखते हैं। संकष्टी चतुर्थी को पूरे विधि-विधान से गणपति की पूजा-पाठ की जाती है।

जानें आज चंद्रोदय का समय...
संकष्टी चतुर्थी की तिथि सोमवार को है। इस दिन चंद्रोदय के बाद संकष्टी की पूजा का विधान है। 8 जून को 21 बजकर 56 मिनट पर चंद्रोदय होगा।

संकष्टी चतुर्थी कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के चौथे दिन मनाई जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार चतुर्थी हर महीने में दो बार आती है जिसे लोग बहुत श्रद्धा से मनाते हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं, वहीं अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं।

संकष्टी चतुर्थी को भगवान गणेश की आराधना करने के लिए विशेष दिन माना गया है। शास्त्रों के अनुसार माघ माह में पड़ने वाली पूर्णिमा के बाद की चतुर्थी बहुत शुभ होती है। यह दिन भारत के उत्तरी और दक्षिणी राज्यों में ज्यादा धूम-धाम से मनाया जाता है।

इन बातों का रखें ध्यान...
संकष्टी चतुर्थी का व्रत कठिन व्रतों में से एक है। मान्यता है कि इस व्रत में केवल फल, जड़ यानि जमीन के अन्दर पौधों का भाग का ही सेवन करना चाहिए, तभी इस व्रत का पूर्ण लाभ प्राप्त होता है।

संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
गणपति में आस्था रखने वाले लोग इस दिन उपवास रखकर उन्हें प्रसन्न कर अपने मनचाहे फल की कामना करते हैं।

: इस दिन आप प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठ जाएं।
: व्रत करने वाले लोग सबसे पहले स्नान कर साफ़ और धुले हुए कपड़े पहन लें। इस दिन लाल रंग का वस्त्र धारण करना बेहद शुभ माना जाता है और साथ में यह भी कहा जाता है कि ऐसा करने से व्रत सफल होता है।
: स्नान के बाद वे गणपति की पूजा की शुरुआत करें। गणपति की पूजा करते समय जातक को अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए।

: श्री गणेशजी की आरती...
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एकदन्त दयावन्त, चार भुजाधारी।
माथे पर तिलक सोहे, मूसे की सवारी।।
पान चढ़े फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधे को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत,निर्धन को माया।।
'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
दीनन की लाज राखो, शम्भु सुतवारी।
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

: सबसे पहले आप गणपति की मूर्ति को फूलों से अच्छी तरह से सजा लें।
: पूजा में आप तिल, गुड़, लड्डू, फूल ताम्बे के कलश में पानी , धुप, चन्दन , प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रख लें।
: ध्यान रहे कि पूजा के समय आप देवी दुर्गा की प्रतिमा या मूर्ति भी अपने पास रखें। ऐसा करना बेहद शुभ माना जाता है।
: गणपति को रोली लगाएं, फूल और जल अर्पित करें।
: संकष्टी को भगवान् गणपति को तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं।
: गणपति के सामने धूप-दीप जला कर इस मंत्र का जाप करें।
गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।

: पूजा के बाद आप फल, मूंगफली, खीर, दूध या साबूदाने को छोड़कर कुछ भी न खाएं। बहुत से लोग व्रत वाले दिन सेंधा नमक का इस्तेमाल करते हैं लेकिन आप सेंधा नमक नज़रअंदाज़ करने की कोशिश करें।

: शाम के समय चांद के निकलने से पहले आप गणपति की पूजा करें और संकष्टी व्रत कथा का पाठ करें।
: पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद बाटें। रात को चांद देखने के बाद व्रत खोला जाता है और इस प्रकार संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूर्ण होता है।

संकष्टी चतुर्थी का महत्व
संकष्टी के दिन गणपति की पूजा करने से घर से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं और शांति बनी रहती है। ऐसा कहा जाता है कि गणेश जी घर में आ रही सारी विपदाओं को दूर करते हैं और व्यक्ति की मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। पूरे साल में संकष्टी चतुर्थी के 13 व्रत रखे जाते हैं। सभी व्रत के लिए एक अलग व्रत कथा है।

व्रत में इन चीजों का सेवन करें
इस व्रत में साबूदाना खिचड़ी,आलू और मूंगफली से निर्मित आहार लिए जा सकते हैं।